हरयाणे का एक गिट्ठा सा छोरा दिल्ली बस मैं जा था भीड़ घणी थी खड़े नै धक्के लागैं थे उपर सहारे आले डंडे तंइ उसका हाथ ना पौंच्या … एक लाम्बा सा माणस खड़या था उसकी दाड्ढी पकड़ कै खड़या हो ग्या अराम तै …
उस बंदे नै सोच्ची गल्ती तै पकड़ रया है बोल्या :- जनाब आप मेरी दाढ़ी पकड़े खड़े हैं इसे छोड़ दीजिए …
म्हारे आला गिठ मुठिया बोल्या :- क्यों उतरणा है के


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