*घुंघरू* की आवाज दिन में सुनायी

दे तो कितनी *मधुर* लगती है

किन्तु वही आवाज *अचानक* रात

को *सुनायी* दे जाये तो

*हनुमान चालीसा* याद आ जाती है


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