ऑफिस के बिजी शेड्यूल और थकान के उपरांत एक महिला मेट्रो में चढ़ी और अपनी सीट ग्रहण कर अपनी आंखें बंद करके थोड़ा मानसिक आराम कर तनाव दूर कर रही थी….

जैसे ही ट्रेन स्टेशन से आगे बढ़ी, एक भाई साहब जो कि महिला के बगल में बैठे थे, अपना मोबाइल निकाला और जोर जोर से बातें करने लगा।

भाई का संवाद इस प्रकार था…

“जानेमन मैं विजय बोल रहा हूँ और मेट्रो पकड़ ली है……

हाँ मुझे पता है कि अभी सात बजे है पांच नहीं, मैं मीटिंग में व्यस्त हो गया था इसलिए देर हो गई।

“नहीं जानेमन, मैं एकाउन्टेंट प्रीति के साथ नहीं था, मैं बॉस के साथ मीटिंग में था”

“नहीं जान, केवल तुम अकेली ही मेरे जीवन मे हो”

“हाँ पक्का कसम से”….

पन्द्रह मिनट बाद भी जब विजय भाई जोर जोर से वार्तालाप जारी किए हुए थे, तब वह महिला जो कि परेशान हो चुकी थी फोन के पास जाकर जोर से बोली…

“विजय डार्लिंग फ़ोन बंद करो बहुत हो चुका अब तुम्हारी प्रीती और इंतजार नहीं कर सकती….!

*अब भाई साहब अस्पताल से वापिस आ चुके है और उन्होंने सार्वजनिक स्थान पर मोबाइल का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर दिया है।


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