एक भाई एक तीस मंजिल बिल्डिंग की छत पै बैठ्या था …
जब्बे किसे नै आकै उसतै रुक्का दिया … औ परकासे तेरी बहू तेरे पड़ोसी राजबीर गैल्यां भाजगी …
दिल टूट ग्या माणस का अर घणी बेज्जती बी फील कर ग्या … बस दुख मैं उपर तै छाल मारदी ,
पच्चिसवीं मंजिल धौरै उसके ध्यान आई … अक मेरे पड़ोस मैं तो कोए राजबीर ना रैहता …
बीसवीं मंजिल पै दिमाग मैं आया अक रै मेरा तो ब्याह ए ना हो रया …
दसवीं मंजिल तक याद आया … ओ तेरी बेब्बे कै मेरा नाम तो सरेंदर है … या परकासा कौण है … ???
हट मेरे यार … तो मिसटर सरेंदर आपका समय समाप्त होता है … अब


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